इश्क मोहब्बत प्रेम यह तो है महलों के ख्वाब,,साहाब,, हमें तो इश्क है अपने काम से,,,, क्या मजबूरी है जो तपती धूप में भी अपने शरीर की फिक्र नहीं,,,,, वो स्त्री नंगे पांव सर पर टोकरा उठाएं बोझ परिवार का बोझ है मासूम बच्चों का,,,, घर आते ही मांगेंगे रोटी वह नादान क्या मालूम कि आज नहीं हुई बोनी,,,,