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कई "सपने" टूट जाते हैं,...मुकम्मल हर 'ख़्वाहिश' न

कई "सपने" टूट  जाते हैं,...मुकम्मल  हर 'ख़्वाहिश' नहीं होती

'इश्क़' किया है तो बदनामी भी झेलो, इसमें 'सहूलियत' की गुंजाइश नहीं होती


---डॉ प्रशान्त मिश्रा "सहूलियत"
कई "सपने" टूट  जाते हैं,...मुकम्मल  हर 'ख़्वाहिश' नहीं होती

'इश्क़' किया है तो बदनामी भी झेलो, इसमें 'सहूलियत' की गुंजाइश नहीं होती


---डॉ प्रशान्त मिश्रा "सहूलियत"

"सहूलियत"