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ख़ाक में शिर्फ़ ज़िस्म ही नही मिलता, तेरी दी हुई जख्म

ख़ाक में शिर्फ़ ज़िस्म ही नही मिलता,
तेरी दी हुई जख्म-ओ-जाँ भी मिलती है।

कोई जल रहा है तेरी लगाई आग में,
उसकी चीख तुझे संगीत सी लगती है।

बस कर!ठहर जा,अब किसी दहलीज पर तू
कि ये यौवन बर्फ सी उम्र-दर-उम्र पिघलती है।

मैं न सही,कोई और सही,कहीं,कोई तो सही,
तू बहती नदी सी है तो बता,तू कहाँ गिरती है।। तुझसे सुरु-तुझपे खतम
ख़ाक में शिर्फ़ ज़िस्म ही नही मिलता,
तेरी दी हुई जख्म-ओ-जाँ भी मिलती है।

कोई जल रहा है तेरी लगाई आग में,
उसकी चीख तुझे संगीत सी लगती है।

बस कर!ठहर जा,अब किसी दहलीज पर तू
कि ये यौवन बर्फ सी उम्र-दर-उम्र पिघलती है।

मैं न सही,कोई और सही,कहीं,कोई तो सही,
तू बहती नदी सी है तो बता,तू कहाँ गिरती है।। तुझसे सुरु-तुझपे खतम