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छोड़ कर सुखों को सँसार के ,मन रिक्त ही रहा सब कुछ

 छोड़ कर सुखों को  सँसार के ,मन रिक्त ही रहा सब कुछ हार के ,
जीवन के कोरे पन्ने अबभी कोरे हैं, मिलेगी न मुक्ति भ्रम को स्वीकार के,

त्याग  कर  भी   तज    न   सका ,ये जो बन्धन थे मोह माया के,
मुक्तिपथ पर चलकर भी , लोभ ,मोह ,अहंकार और भी सवाया थे,

कहां  छोड़  पाए  तुम ,  दौलत-ओ-रसूख़  की  दुनिया,
संग  संग   चलती रही सदैव , सच और झूठ की दुनिया,

क्या ईश्वर को पा   सकोगे  तुम  ,ईश की रचना को त्यागकर,
इस लोक को जीत न पाए , उस लोक में भी बैठोगे हार कर।।

-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
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