पहली बार जब देखा तुम्हें.. सुबह की एक किरन सी लगी.. पूछा जब लोगों से मैंने.. तो तुम एक ख्वाब सी लगी.. बोलना तो चाहा बहुत तुमसे पर बोल ना सका.. क्या करूँ तुम एक सुंदर एहसास सी लगी.. छुप जाये रौशनी भी तुम्हारे हसते चेहरे के पीछे.. तुम मेरे दिलों के जज़्बात सी लगी.. बंद की आँख तुम राधिका सी लगी.. आंख खोली तो तुम रुक्मणी सी लगी.. प्रेम था अपार दोनों में ओस और पुष्प की तरह.. पर मुझको मेरी रुक्मणी तुम लगी.. प्रेम होता नहीं है ये हो जाता है.. शांत एकांत मे जब तुम्हें सोचूँ तो.. राधा का कृष्ण पागल ये हो जाता है.. बंशी की धुन पे तेरा ही नाम लेता हूँ.. सात स्वर में अब तेरा ही गान करता हूं... ☺️