कोकिलानां स्वरो रूपं, नारी रूपं पतिव्रतम् ! विद्या रूपं कुरूपाणां, क्षमा रूपं तपस्विनाम् !! हमारी धार्मिक पुस्तकों या शास्त्रों में बुराइयों को ढूंढने वालों की आँखे पता नहीं क्या देख लेती हैं जिसे लेकर वो इनका विरोध करने लग जाते हैं। ☕😂😁😁☕☕🍫☕🌹 जब ये श्लोक मैंने सुनाया तो एक नारीवाद की पक्षधर बोली कि इसमें पुरुषों के लिए तो कुछ नही कहा । ☕☕☕☕😁😂🍫☕🌹 मैंने कहा कोई बात नही उनके लिए आप हो । : जैसे कोयल का मधुर स्वर उसके रूप को पहचान देता है । ठीक बैसे ही संयमित मधुर वाणी हमारी पहिचान बनती है ।