भोर हुई है अब जिस तरह सूरज की किरणें, अलग- अलग समय पर रोशन करती हैं धरा की सतह को, सबके जीवन सफल होते अपने बलबूते पर। भोर हुई है अब यहाँ, उठ खड़े हुए हैं हम, दे रहे नई ज़िन्दगी भावी पीढ़ी को, अब भी अँधियारी है झोंपड़ियों में कहीं। आज आज़ाद है देश हमारा, जश्न के बज रहे है डंके दोस्त, कितने ही नौजवान नये पथ पर अग्रसर होंगे, न जाने कितनों को संग अपने कर देंगे व्यस्त। भोर हुई है अब यहाँ, नए सपने सज रहे हैं दुल्हनों की आँखों में रोज़, कहीं शहीद हो रहीं वे रिवाजों की आड़ में। आज हम सब सीख रहे लड़ना, यहाँ नहीं जगह अंधविश्वासों की, नई सोच के संग समय भी बदले, बदले इस ज़मीन पर फसल की उपज।। #rztask495 #restzone #rzलेखकसमूह #भोर