अच्युथ भव: यश धन रिद्धि सिद्धि के दाता। प्रथम पूज्य की है यह एक गाथा। माता पार्वती के मन में पुत्र की इच्छा ने जन्म लिया। अपने मैल से उन्होंने निर्जीव मूरत को साकार किया। प्राण प्रतिष्ठा की उसमें और उसको जीवन दिया। एक सुंदर से बालक ने माता शब्द का उद्घोष किया। उसके मुख से माता सुन माता का हृदय झूम उठा। क्या आज्ञा हैं मेरे लिए ये सुनकर ध्यान था टूटा। सखियों संग मैं अपने कक्ष के भीतर जाती हूँ। कोई न आने पाए भीतर तुम्हें रक्षक बनाती हूँ। निश्चिंत हो स्नान कीजिए कोई त्रुटि न होने दूंगा। चाहे प्राण चले जाए पर अंदर किसी को न आने दूंगा। एक बालक अपनी माता के कक्ष के बाहर दे रहा था पहरा। आने वाले समय का कुचक्र होने वाला था कुछ गहरा। भोलेनाथ शिव शंकर लौट कर कैलाश पर्वत पर आए थे। उमा से भेंट करने के लिए वे हृदय से अकुलाए थे। (अनुशीर्षक में……) अच्युथ भव: यश धन रिद्धि सिद्धि के दाता। प्रथम पूज्य की है यह एक गाथा। माता पार्वती के मन में पुत्र की इच्छा ने जन्म लिया। अपने मैल से उन्होंने निर्जीव मूरत को साकार किया।