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#DearZindagi NAZM -"कमीनी साँसें" ये मुसलसल चलती

#DearZindagi NAZM -"कमीनी साँसें"

ये मुसलसल चलती हुयी साँसें
क़तरा क़तरा
दिन रात का जमा करके
उम्र का एक लम्बा पहाड़ बनाती हैं।

हम सब इसी पहाड़ के पेड़ हैं
देवदार और सनोबर के।
सदियों से आँखों मे धूप भरते भरते
धीरे-धीरे बड़े होते हैं।

जब हम पलकों पे बर्फ़ लिये
ओस भरी नज़रों से
दूर किसी गिरते हुए झरने को देख रहे होते
   हैं,
या जब रात की टिमटिमाती हुयी
गहराईयों के सन्नाटों में खोये हुये होते हैं,
तब उस वक़्त साँसें काट रही होती हैं हमारी जड़ों को।
साँसें पैदाइशी कमीनी हैं।
ये हमें पालने के साथ-साथ
हमें काट भी रही हैं।
 
एक मुकाम पर
अपने ही बनाये पहाड़ पर
अपने ही पेड़ को काट कर गिराती हैं ये साँसें।
साँसें पैदाईशी कमीनी होती हैं।

Written by-"NISHANT" #nojotopoetry #nojotomusic #nojotoshayari #nojotoquotes #nojotoghazal
NAZM -"कमीनी साँसें"

ये मुसलसल चलती हुयी साँसें
क़तरा क़तरा
दिन रात का जमा करके
उम्र का एक लम्बा पहाड़ बनाती हैं।
#DearZindagi NAZM -"कमीनी साँसें"

ये मुसलसल चलती हुयी साँसें
क़तरा क़तरा
दिन रात का जमा करके
उम्र का एक लम्बा पहाड़ बनाती हैं।

हम सब इसी पहाड़ के पेड़ हैं
देवदार और सनोबर के।
सदियों से आँखों मे धूप भरते भरते
धीरे-धीरे बड़े होते हैं।

जब हम पलकों पे बर्फ़ लिये
ओस भरी नज़रों से
दूर किसी गिरते हुए झरने को देख रहे होते
   हैं,
या जब रात की टिमटिमाती हुयी
गहराईयों के सन्नाटों में खोये हुये होते हैं,
तब उस वक़्त साँसें काट रही होती हैं हमारी जड़ों को।
साँसें पैदाइशी कमीनी हैं।
ये हमें पालने के साथ-साथ
हमें काट भी रही हैं।
 
एक मुकाम पर
अपने ही बनाये पहाड़ पर
अपने ही पेड़ को काट कर गिराती हैं ये साँसें।
साँसें पैदाईशी कमीनी होती हैं।

Written by-"NISHANT" #nojotopoetry #nojotomusic #nojotoshayari #nojotoquotes #nojotoghazal
NAZM -"कमीनी साँसें"

ये मुसलसल चलती हुयी साँसें
क़तरा क़तरा
दिन रात का जमा करके
उम्र का एक लम्बा पहाड़ बनाती हैं।