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क्या ख़ाक मज़ा है जीने में। यहां आग लगी है सीने में।

क्या ख़ाक मज़ा है जीने में।
यहां आग लगी है सीने में।
हर अश्क़ मैं पी जाऊँ,
न आए रास घूँट -घूँट पीने में।।

अंजली श्रीवास्तव अंजली
क्या ख़ाक मज़ा है जीने में।
यहां आग लगी है सीने में।
हर अश्क़ मैं पी जाऊँ,
न आए रास घूँट -घूँट पीने में।।

अंजली श्रीवास्तव अंजली