जिनको कभी ना देखा वो पास आ गए, जिनको था दिल से चाहा वो दूर हो गए। जाते ना दूर कैसे जब रब ने लिख दिया, वो फर्ज से लाचार थे हम मजबूर हो गए। वह खुश रहे हमेशा मेरी दुआ है रब से, मैं जी रही अकेली तन्हाइयों में जाने कब से। अपनों से क्या छुपाऊंँ मैं राज जिंदगी का, गम में भी हंँसना अब मेरे दस्तूर से हो गए। मिलती है जब कभी भी उनसे मेरी नजर, कुछ सोच कर मैं थाम लेती हूंँ मेरा जिगर। इतना असर है उनकी उस एक निगाह में, लगता है अब तो बस सारे गम दूर हो गए। बरबादियों के शहर में अब सबसे बड़ी हूंँ मैं,सब कुछ लुटा करके इश्क में चल पड़ी हूंँ मैं। किसको सुनाऊंँ अपने इश्क की अधूरी दास्तांँ बिन कुछ कहे आशिकी में मशहूर हो गए। चाहते थे जिंदगी अपनी मनमर्जी से गुजारें, बनाकर प्यार को जिंदगी हम जिंदगी संँवारे। ख्वाब टूट गए, हमारी कहानी अधूरी रह गई, देते हैं अब वो दिलासा जो हमसे दूर हो गए। रविवार विशेष प्रतियोगिता विशेष पुरस्कार...02. में आप सभी का स्वागत है! अपने दिल से कोई भी दर्द भरी कविता लिखें! Done न लिखे अपनी रचना को ही कमेंट बॉक्स मे पेस्ट कर्रे शीर्षक और अपना नाम भी लिखे email भी दे ➡ रविवार विशेष प्रतियोगिता संख्या- 02 ➡ रचना 8 पंक्तियों में लिखें