फुर्कत की ग़ज़ल गा रहा हूं मै, हर्फ से जख्म सिलवा रहा हूं मैं। एक उम्र तिरी यादों से भीगता रहा , अब रोज खुद को सूखा रहा हूं मैं। किसी हंसी शाम छत पर से उसको, शफक जैसे दिखला रहा हूं मैं। जो तुमको दे न सका वो तमाम खत, पढ़ - पढ़ कर जला रहा हूं मैं। मै जो चला तुम्हारे नक्श के साथ, किधर जाना किधर जा रहा हूं मैं। है कोई और तो नहीं शबिस्तां में, बत्तियां खुद से ही बुझा रहा हूं मैं। ये क्या कम है कि अपने साथी को, ग़म हिज्र का वो सुना रहा हूं मैं। एक सतर में तुम्हारा हुस्न लिखकर, नफस खुद की गिने जा रहा हूं मैं। #nojoto #vishalkashyap #unnao #sad