लम्हा निकल जाते हैं जब लम्हे हाथ से सुलझ पाते नहीं फिर वो बात से बनते बिगड़ते हालात से बन पाती नहीं फिर बात,बात से निकल जाते हैं जब लम्हे हाथ से बिखरते जज़्बात के एहसासों से राहों में मीलती गुमराही से रूबरू नहीं हो पाई उन राहों से निकल जाते हैं जब लम्हे हाथ से सुलगती ख्वाहिशों में जंजीरो की जकड़ से जकड़ ऐसी उस भवर से के आजाद नहीं हो पाई उस कैद से निकल जाते हैं जब लम्हे हाथ से एहसासों के टूटते डोर से अनकही रह गई बोल से निकल ना पाई हो जैसे तीर कमान से निकल जाते हैं जब लम्हे हाथ से लम्हा#नोजोटो#अनकही बोल से