कभी खुशी तो कभी ग़म को लिखा करता हूं। कभी लिखता हूं रवैय्यत को, कभी रज़ा बयां करता हूं। कभी हौसलों का उद्गम तो कभी नस्लों का अंत लिखता हूं। लिखने वाले तो कांटों में फूल लिखते हैं, मैं कैसा हूं जो ढांचे में जिस्म लिखा करता हूं। कभी गुरुर में मुझको ना पढ़ लेना भाई, वही समझोगे जो मैं नहीं लिखा करता हूं। नहीं है शौक मुझे मन की तुम्हें सुनाने की, कहता हूं क्योंकि तुमको भी लिखा करता हूं। #lifelessons #criticism