सब तो आने-जाने हैं। लगता है अनजाने हैं।। रंगीं ख़्वाबों-सी दुनिया, किसके कहाँ ठिकाने हैं ? दिन दो रहना है सबको, बात यही समझाने हैं । गोरी चमड़ी है ढलती, राज यही बतलाने हैं। पद-दौलत, ज़र रह जाते, हाथ कहाँ कुछ जाने है? माटी में खिल पल-बढ़कर, माटी बीच समाने हैं। भवसागर का बंधन छूटे मिलके जतन कराने हैं। अनिल कुमार ''निश्छल'' शिवनी, हमीरपुर ©अनिल कुमार "निश्छल" पद-दौलत, ज़र रह जाते, हाथ कहाँ कुछ जाने है? माटी में खिल पल-बढ़कर, माटी बीच समाने हैं। भवसागर का बंधन छूटे मिलके जतन कराने हैं।