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कभी तो क़रीब आओ, क्यों ख्वाबों में सताते हो..! दूरी

कभी तो क़रीब आओ,
क्यों ख्वाबों में सताते हो..!
दूरी से रिश्ते निभाते,
फिर नज़दीकियाँ बताते हो..!
लिखे खतों का मेरे तुम,
जवाब तक न दे पाते हो..!
समझता नहीं दिल मेरा,
आख़िर तुम क्या चाहते हो..!
मन के भीतर कैसे झाँके,
क्यों ऊपरी इश्क़ जताते हो..!
क़रीब होना जब भी चाहें,
हमको आँख दिखाते हो..!
कभी लग कर सीने से हमारे,
इश्क़ में हमें भिगाते हो..!
मजबूर होने से मशहूर होने तक की,
कला यूँ हमें सिखाते हो..!

©SHIVA KANT(Shayar)
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