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खुद अपने आप से मासूम बच्चा रूठ जाता है। खिलौना जब

खुद अपने आप से मासूम बच्चा रूठ जाता है।
खिलौना जब कभी हाथो से उसके टूट जाता है।।

न पूछो जिन्दगी के चार दिन कैसे गुजरते है।
कडे दुख के सफर में हमसफर जब छूट जाता है।।

खामोशी डर सन्नाटा अन्धेरा यास तन्हाई।
यही महफिल रास कब आती है जब दिल टूट जाता है।।

अभी उसके गुनाहो की नहीं ये इंतिहा शायद। 
घड़ा जब पाप का भरता है तो वह फूट जाता है।।

कोई माने न माने पर है सच्चा तजुर्बा रमजानी।
कई झूठे इकट्ठा हो तो सच्चा टूट जाता है।।
22/9/15

©MSA RAMZANI #ghazal 
#tanhaai 
#tootadil 
 Sarfraz Ahmad  Author Shivam kumar Mishra (Shivanjal)  Tushar Yadav  Mukesh Poonia
खुद अपने आप से मासूम बच्चा रूठ जाता है।
खिलौना जब कभी हाथो से उसके टूट जाता है।।

न पूछो जिन्दगी के चार दिन कैसे गुजरते है।
कडे दुख के सफर में हमसफर जब छूट जाता है।।

खामोशी डर सन्नाटा अन्धेरा यास तन्हाई।
यही महफिल रास कब आती है जब दिल टूट जाता है।।

अभी उसके गुनाहो की नहीं ये इंतिहा शायद। 
घड़ा जब पाप का भरता है तो वह फूट जाता है।।

कोई माने न माने पर है सच्चा तजुर्बा रमजानी।
कई झूठे इकट्ठा हो तो सच्चा टूट जाता है।।
22/9/15

©MSA RAMZANI #ghazal 
#tanhaai 
#tootadil 
 Sarfraz Ahmad  Author Shivam kumar Mishra (Shivanjal)  Tushar Yadav  Mukesh Poonia
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