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#लिखती हूँ कि घर में किसी के सरकारी नौकरी पेशा ना

#लिखती हूँ कि

घर में किसी के सरकारी नौकरी पेशा ना होने कारण
हमारी परवरिश में कोई बनावटी पन नहीं था 
खेत में खड़ी दो रबी की वो फसल पापा के लिए सब कुछ था।
हमारे संस्कारों में good morning/hii/hello नहीं था
हमने सीखा सादगी से खुशियों को इकट्ठा करना
हमे सिखाया गया मेहमानों से नमस्ते करना। 
हमारे लिए शहरों की धूल सोना हुआ करती थी
जो नानी के घर या अक्सर डॉक्टर के पास जाने में मिलती थी। 
Choclates तो मानो किसी विदेशी निवेश के समान थी
संतरे की गोलियाँ 1 की 4 ही खुशियों में चार चाँद थी। 
हमें शहर के CBSE में पढाना जैसे पापा के सारे अरमान थे
खड़ी बोली सीखते हम अपनी Mummy की जान थे। 
हमारी परवरिश में कोई बनावटी पन नहीं था 
खेत में खड़ी दो रबी की वो फसल पापा के लिए सब कुछ था। 
मम्मी ने भी कभी सिर का पल्लू खोल-
घर की दहलीज के बाहर नहीं झांका
लड़की के नाते हमें भी उसी माहौल में ढाला। 
खैर, अब तो समय का बदलाव ही असली हकीकत है
और आज हम जो कुछ भी हैं उन्ही की बदौलत हैं।।

©Pragya Singh
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