'जियो मेरी शेरनी',
साथ छोड़ रहे कांपते हुए तनीशा के शरीर में जैसे विवान के कहे हुए इन शब्दों ने जान सी फूंक दी थी।
तनीशा काफ़ी दिनों से बहुत बिमार थी, वो पिछले दिनों इतना कुछ झेल चुकी थी कि अब उसकी सहनशक्ति जवाब दे रही थी। कमजोरी के मारे उठा भी नहीं जा रहा था, उससे बस किसी तरह विवान को एक बार देखना चाहती थी। विवान को भी उसकी बहुत चिंता हो रही थी, मग़र परिस्थितियों के आगे दोनों मजबूर थे। विवान तनीशा कि आख़िरी उम्मीद था। कुछ बेहद गहरे रिश्तों से आघात पा चुकी तनीशा को बस विवान पर ही भरोसा था। विवान को एक बार देखना भर तनीशा के लिए किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं था। आख़िरकार भोलेनाथ को अपनी अनन्य भक्त पर दया आ ही गई आँखें बंद कर होश खो रही तनीशा के कानों में एक आवाज़ गूंजी जैसे किसी खाली कमरे में दिल की तेज़ चल रही धड़कन भी कानों में गूंजने लगती है वैसे ही विवान के वो शब्द तनीशा के दिलो दिमाग में गूंजने लगे थे। बस फिर क्या न होते हुए भी तनीशा को विवान के होने का अहसास हो गया और उसकी खोयी हुई जीने की आस उसे वापस मिल गई।तनीशा को बस अब यही नज़र आ रहा था कितनी जल्दी वो सही हो जाए क्योंकि वो डरने वालों में से नहीं है अपने शेर की शेरनी है वो शेरनी।
Fiction😊
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