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mera payara gawan *""""""*****"""""**** "

mera payara gawan
         *""""""*****"""""****
"गांव की गलियां अब न भाती मुझे
शहरों से लगाव हो गया,मेरा बचपन
जो गुजरा कभी तंग गलियों में अब
चौड़ी सड़को का दीवाना हो गया
अब न भाती मुझे, खेत जोतते वो, 
बेलों की जोड़ियां,अब न भाते खेत
खलियान ,अब तो हमें भाने लगे है ,
वो ,पार्क और लोगों से भरे ,हरे मैदान
अब न रहा शौक़ ,हमें दूध और लस्सी
का,अब तो हमें भाने लगी दारू,बियर
और कोल्ड ड्रिंक्स की बोतल,अब न 
भाती हमें गांव की गौरी,अब तो दीवाना 
बनाती शहर की छोरी,अब न भाते हमें गांव
के रीति,रिवाज़ अब तो भाने लगे शहरों
की पार्टीयां, और संस्कृति, अब कहां भाते
हमें गांव के मामी, मामा, काका, काकी
अब तो भाने लगे ,शब्द अंकल  और आंटी
अब हर एक गांव वृद्ध हो चला है, अब
न रहें वो पुराने लोग,और वो संस्कार अब
न, रहा वो प्यार भरा व्यवहार, सारे रिश्ते
अब सिमट गए है, गांव भी अब शहर हो
गए है ,मिट रहा है,अब वजूद गांव का 
मिट रहा है, प्यार भरा आसरा छांव का"

©पथिक #गांवशहर
mera payara gawan
         *""""""*****"""""****
"गांव की गलियां अब न भाती मुझे
शहरों से लगाव हो गया,मेरा बचपन
जो गुजरा कभी तंग गलियों में अब
चौड़ी सड़को का दीवाना हो गया
अब न भाती मुझे, खेत जोतते वो, 
बेलों की जोड़ियां,अब न भाते खेत
खलियान ,अब तो हमें भाने लगे है ,
वो ,पार्क और लोगों से भरे ,हरे मैदान
अब न रहा शौक़ ,हमें दूध और लस्सी
का,अब तो हमें भाने लगी दारू,बियर
और कोल्ड ड्रिंक्स की बोतल,अब न 
भाती हमें गांव की गौरी,अब तो दीवाना 
बनाती शहर की छोरी,अब न भाते हमें गांव
के रीति,रिवाज़ अब तो भाने लगे शहरों
की पार्टीयां, और संस्कृति, अब कहां भाते
हमें गांव के मामी, मामा, काका, काकी
अब तो भाने लगे ,शब्द अंकल  और आंटी
अब हर एक गांव वृद्ध हो चला है, अब
न रहें वो पुराने लोग,और वो संस्कार अब
न, रहा वो प्यार भरा व्यवहार, सारे रिश्ते
अब सिमट गए है, गांव भी अब शहर हो
गए है ,मिट रहा है,अब वजूद गांव का 
मिट रहा है, प्यार भरा आसरा छांव का"

©पथिक #गांवशहर