हम रात के मुसाफ़िर है... ज़नाब दुनिया सोएगी तो कहीं हमारी बात होगी।
इसका मतलब ये नही की हम किसी के जागते हुए बोल नहीं सकते है। लेकिन रात की गहराई में जब शब्द भावनात्मक रूप से बदल कर भौतिक रूप में कीबोर्ड से होकर आपकी स्क्रीन पर आता है तो इसका असरदार होना स्वभाविक है। ये प्राकृतिक है रात्रि में frequency बहुत कम होती है सब शून्य की और होता है। तो बातों में गहराई होती है।
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