कब जागोगे सरकार... थके, बेबस, लाचार मजदूर हैं, सरकार। कब तक करे इंतजार.. सब सही हो, रोटी मिलें चार । मजबूर हैं, सरकार। भूखे प्यासे बच्चों को घरों का इन्तजार.. कब तक सोयें खाली पेट, नन्ही से ये जान। कुछ तो करो सरकार। निकल पड़े घर को, मीलों चलते चलते, पावों में कंकण चुभते, रस्ते हुए लहूलुहान, वो भी हुए लाचार, कुछ तो करो सरकार। नहीं थके कदम उनके, थके रास्ते-पथ। एक आशा, एक उम्मीद, अपने गांव के घर से, वही मिले झोपड़ी, नहीं चाहिये घर आलीशान, कुछ तो करो सरकार। कुछ पहुँचे घर, कुछ रस्ते में दम तोड़ दिए, कितनों ने मां का आँचल, कितनो ने बच्चो के बचपन, से मुख मोड़ लिए, नही नसीब गांव का घर, सपने सब शमसान, कब जागोगे सरकार। प्रेम कुमार सिंह सेंगर #majdur