चीत्कार उठें ले पांव छाला प्रलाप करे ले आत हाला मधुप नहीं है हम भाया जो कुंठित करे हो हल्ला लगने दो अंबार अभाव की उगने भी दो शाल कांटों की भंजक है हम भंजन ही करे मिटे चाहे अब वजूद हमारे अवसाद से हिलत न चूल हमारी हम नहीं यहाँ रसग्राही की डाली गुलाब सा ही जीवन अपना शूल चुभे डाली के है माला मौन को समझ न कायरता उर में नहीं हमारे अधीरता धैर्य साहस मेरे रग रग में तभी तो महके धर निडरता निराला सफर के हमसफ़र , भयभीत न होते लेख डगर ! अभाव अवसाद जो हो हाला , कदम न थमते ले कुंठित भाला !🤔 धन्यवाद 🙏 ___संजय निराला ✍️ #कुछबात #कुछजज्बात #हिंदी_दिवस_की_बहुत_बहुत_हार्दिक_बधाई ©संजय निराला #sunrays