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मां-बाप बच्चों को सम्पत्ति मानते हैं। बच्चे तो मुक

मां-बाप बच्चों को सम्पत्ति मानते हैं।
बच्चे तो मुक्त जीना चाहते हैं।
साधन मां-बाप से ही मांगते हैं,
किन्तु सलाह नहीं मानते।
शिक्षा ही जीवन की सांत्वना है।
नौकरी मिलना भाग्य की बात।
फिर, मनचाही नौकरी!
शिक्षा का ढांचा सरकार तय करती है।
नीतियां शिक्षाविद् बनाते नहीं।
नौकरियां सरकार के हाथ मे हैं।
सरकार कॉलेज तो खोलने का आतुर रहती है,
न नौकरी देती है,
न ही श्रम करना सिखाती है। 💞☘#पंछी🍫☕🐦#पाठक🤓🍁🍹🌹🐇#शिक्षा😅🐰☕#नौकरी🍫☘🌿🍹🌹#भारतीय🌹🐇🍹#ज्ञान🌿🍁🤓🐦#युवा🍁🌿🍹🌹🍁🤓🤓🐦🤓🍁#जिंदगी🌹🍹🍫
आज शिक्षा के नाम पर घर बेचकर जीवन के 15-20 वर्ष लगाना समझदारी नजर नहीं आती। शिक्षा, पहली बात तो यह है कि हमें समझदार ही नहीं बनाती। आगे चलकर ये ही लोग शिक्षा नीतियां तैयार करते हैं। इसीलिए आज भारतीय संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान शिक्षा से बाहर हो गए। हमारा साधारण अथवा उच्च शिक्षा प्राप्त कोई भी व्यक्ति भारतीय संस्कृति से परिचित नजर नहीं आता। आजादी के बाद भी हम अपने देशी बच्चों को शिक्षा के द्वारा विदेशी भी बना रहे हैं और उन्हें व्यक्तित्व निर्माण के मानवीय-नैसर्गिक मूल्यों से दूर भी कर रहे हैं। आज की शिक्षा का यही लक्ष्य रह गया है।
देश में उच्च शिक्षा का अलग मंत्रालय है। राज्यों में भी है। ठेका लेकिन यूजीसी (यूनिवर्सिटी ग्राण्ट कमीशन) को दे रखा है। इसमें कितने लोग हैं जो भारतीय संस्कृति के विकास के प्रति कटिबद्ध हैं? उच्च शिक्षा के माध्यम से कौनसा स्तर हम देश में शिक्षित वर्ग का पैदा कर सके? व्यक्ति आज जितना अधिक शिक्षित होता है, वह समाज के काम आने के स्थान पर स्वयं के लिए जीने लग जाता है। समाज के लिए विदेशी हो जाता है। हम एक ओर जातिवाद को समाज का नासूर मानते हैं, वहीं शिक्षित वर्ग की अपनी जातियां और पंचायतें खड़ी करवा दीं। डॉक्टर, वकील, सीए, अधिकारी हर वर्ग की राष्ट्रीय संगठनात्मक कार्यशैली जातियों की तरह ही कार्य कर रही हैं।
इससे भी बड़ा नुकसान उच्च शिक्षा को शैक्षणिक आधार देने के बजाए, गुणवत्ता को विस्मृत करके बाजारवाद की तरह चलाना है। स्नातक तो ऐसे निकल रहे हैं-हर साल, जैसे कारखानों से टीवी-फ्रीज निकल रहे हैं। सब के सब एक जैसे। ज्ञान में ‘अंगूठा छाप’ भी इसी गति से बढ़ रहे हैं। आगे पढऩे वालों के शोधग्रन्थ कोई पढ़ता है क्या? दस प्रतिशत भी पढऩे लायक नहीं मिलेंगे। यूरोप-अमरीका में शोध करने वालों को बरसों लग जाते हैं। यहां आप किसी से, धन देकर, लिखवा सकते हैं। वायवा भी हो जाता है। डिग्री भी मिल जाती है। नौकरी?
🍉😝🍫🍫🐦🌹🍹🍹🍫🍫🍫🍫☕☕🐦क्रमशः -- शिक्षा-01
मां-बाप बच्चों को सम्पत्ति मानते हैं।
बच्चे तो मुक्त जीना चाहते हैं।
साधन मां-बाप से ही मांगते हैं,
किन्तु सलाह नहीं मानते।
शिक्षा ही जीवन की सांत्वना है।
नौकरी मिलना भाग्य की बात।
फिर, मनचाही नौकरी!
शिक्षा का ढांचा सरकार तय करती है।
नीतियां शिक्षाविद् बनाते नहीं।
नौकरियां सरकार के हाथ मे हैं।
सरकार कॉलेज तो खोलने का आतुर रहती है,
न नौकरी देती है,
न ही श्रम करना सिखाती है। 💞☘#पंछी🍫☕🐦#पाठक🤓🍁🍹🌹🐇#शिक्षा😅🐰☕#नौकरी🍫☘🌿🍹🌹#भारतीय🌹🐇🍹#ज्ञान🌿🍁🤓🐦#युवा🍁🌿🍹🌹🍁🤓🤓🐦🤓🍁#जिंदगी🌹🍹🍫
आज शिक्षा के नाम पर घर बेचकर जीवन के 15-20 वर्ष लगाना समझदारी नजर नहीं आती। शिक्षा, पहली बात तो यह है कि हमें समझदार ही नहीं बनाती। आगे चलकर ये ही लोग शिक्षा नीतियां तैयार करते हैं। इसीलिए आज भारतीय संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान शिक्षा से बाहर हो गए। हमारा साधारण अथवा उच्च शिक्षा प्राप्त कोई भी व्यक्ति भारतीय संस्कृति से परिचित नजर नहीं आता। आजादी के बाद भी हम अपने देशी बच्चों को शिक्षा के द्वारा विदेशी भी बना रहे हैं और उन्हें व्यक्तित्व निर्माण के मानवीय-नैसर्गिक मूल्यों से दूर भी कर रहे हैं। आज की शिक्षा का यही लक्ष्य रह गया है।
देश में उच्च शिक्षा का अलग मंत्रालय है। राज्यों में भी है। ठेका लेकिन यूजीसी (यूनिवर्सिटी ग्राण्ट कमीशन) को दे रखा है। इसमें कितने लोग हैं जो भारतीय संस्कृति के विकास के प्रति कटिबद्ध हैं? उच्च शिक्षा के माध्यम से कौनसा स्तर हम देश में शिक्षित वर्ग का पैदा कर सके? व्यक्ति आज जितना अधिक शिक्षित होता है, वह समाज के काम आने के स्थान पर स्वयं के लिए जीने लग जाता है। समाज के लिए विदेशी हो जाता है। हम एक ओर जातिवाद को समाज का नासूर मानते हैं, वहीं शिक्षित वर्ग की अपनी जातियां और पंचायतें खड़ी करवा दीं। डॉक्टर, वकील, सीए, अधिकारी हर वर्ग की राष्ट्रीय संगठनात्मक कार्यशैली जातियों की तरह ही कार्य कर रही हैं।
इससे भी बड़ा नुकसान उच्च शिक्षा को शैक्षणिक आधार देने के बजाए, गुणवत्ता को विस्मृत करके बाजारवाद की तरह चलाना है। स्नातक तो ऐसे निकल रहे हैं-हर साल, जैसे कारखानों से टीवी-फ्रीज निकल रहे हैं। सब के सब एक जैसे। ज्ञान में ‘अंगूठा छाप’ भी इसी गति से बढ़ रहे हैं। आगे पढऩे वालों के शोधग्रन्थ कोई पढ़ता है क्या? दस प्रतिशत भी पढऩे लायक नहीं मिलेंगे। यूरोप-अमरीका में शोध करने वालों को बरसों लग जाते हैं। यहां आप किसी से, धन देकर, लिखवा सकते हैं। वायवा भी हो जाता है। डिग्री भी मिल जाती है। नौकरी?
🍉😝🍫🍫🐦🌹🍹🍹🍫🍫🍫🍫☕☕🐦क्रमशः -- शिक्षा-01