हैरान हूँ मैं देखकर यह आँखों पर पट्टा गहरा वह अच्छे-बुरे का हिसाब नहीं भले-बुरे की पहचान नहीं अपने के वेश में पराया कौन रख हाथ कांधे रोक रहा कौन मौन और बेबस सत्य है अब असत्य का लहराया परचम है विद्वेष रहित बदनाम है अब द्वेष की नहीं कोई पहचान अब मस्तिष्क पर काई जम चुकी है सोच-समझ सारी फिसल रही है कौन सही कौन ग़लत यहाँ अब हिसाब-किताब कुछ पता नहीं रात्रि काली गहरी और गहरी है रोशनी की लगती कोई आस नहीं क़दम बढ़ा रहे सब नासमझी में समझ को थपथपा बड़ी शान में हैरान हूँ यह देखकर सब ओर मैं कैसे मिलेगा कहाँ कोई छोर अब💫 Muनेश...Meरी✍️🌿 बहुत बार ग़ुस्सा नहीं होता, एक हैरानी होती है बस। #हैरानहूँ #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi