तू सवंरती हुई कुछ शहर सी, मैं सीधा सादा सा गांव हूँ, तू इठलाती हुई हिरनी जैसी, मैं थका हारा सा पांव हूँ, तू हर रोज एक नई सुबह सी, मैं वही डूबती हुई शाम हूँ, चहकती हुई तू कोयल जैसी, और मैं इन फ़िज़ाओं में गुमनाम हूँ हाँ, मैं सीधा सादा सा गांव हूँ।। -उदयन राज देव गांव#nojoto#sham#love#