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कि एक और साल गुजर गया मेरी नाकामयाबी का जाने कब जि

कि एक और साल गुजर गया मेरी नाकामयाबी का
जाने कब जिंदगी मेहरबा होगी 
सब के ताने सुनते कान पक गए हैं
जाने कब ये मेहनत लब्ज़ खोलेगी
उस काबिल बस कर दे मेरे मालिक 
कि जब आंखे खोले मां तो तालिया बोलेगी
और गर्व से चौड़ा होगा पिता का सीना 
जिस दिन उनके बेटे की मेहनत बुलंदिया छूलेगी

©mrshayar_jp
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