भइया हंसते हंसते दूर से ही करता हुं नमस्ते जनसंख्या वृद्धी है महामारी इसे ना लो तुम सस्ते सस्ते वर्णा तुम अपने रास्ते हम अपने रास्ते ! कहता हुं मै साफ साफ बढती जनसंख्या है एक सामाजिक अभिश्राप इस धरती पर बढ रहा है जनसंख्या माप इसलिये मुंह छुपाकर छुप रहे है हम और आप ! आज जीवन हो गया बडा हाहाकार और बढ जायेन्गा जग में अनाचार अस्वस्थ होगी सभी की मानसिकता और व्यवहार तब ना होंगे सुंदर और सात्विक विचार ! जीवन हो गया बढा सस्ता सभी की एक जैसी है दास्तां सब पेट के लिये हो जायेंगे खस्ता इस मुश्कील से निकालना पडेगा रास्ता ! इस जनसंख्या वृद्धी से समस्या हुई खडी टूट रही है देश के विकास की लडी स्वस्थ और छोटा परिवार की रेख करो अब खडी तभी तो संसार में खुशिया होगी खरी ! ©salu meena #lotus poem pablic