ख्वाहिश थी बहुत बड़ी कोशिश भी थी बड़े ख्वाबों को मुकम्मल करने की बड़ी शिद्दत भी थी लहद इतनी सी थी की गरीबी की आड़ में खाब दरबदर चूर हो रहे थे और अकेले तन्हा हम बैठे रो रहे थे ख्वाबों का शोर था गम की स्याही थी लिखते थे बंदिशों को तोड़कर फिर भी कहीं कैद रिहाई थी Priyankwriteups ✍✍✍ #goodmorning #google #quotes #love #inspiration