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"ये रात का आलम , हवाओ का झोंका, खिड़कियों से झाँकत

 "ये रात का आलम ,
हवाओ का झोंका,
खिड़कियों से झाँकता ये सूंदर चाँद ,
और हाथों में तेरी यादों की किताब,
जैसे मिला हो मुझे कोई खिताब ,
तेरी यादों में खो जाऊ ,
मगर चाँद देख रहा है 
ये सोच कर खूब शरमाऊ,
तेरी खुशबू से बहक जाऊ ,
मगर हवाओ को ऐतराज है ..
तेरी किताब पड़कर रात बिताऊँ,
मगर तन्हा ये रात भी उदास है ,....

©Parul (kiran)Yadav
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