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जो ज्ञान मुफ्त का बाट रहे.. उनकी उनके कर्मो पे चर्

जो ज्ञान मुफ्त का बाट रहे..
उनकी उनके कर्मो पे चर्चा करवाती हूँ
जो साफ चेहरे लिए घूम रहे
सच्चाई से अभी धुलवाती हूँ....

माँ बाबा को छोड़ वृधाश्रम
गरीबों का दर्द चन्द सेल्फी के लिए।क्यों उजागर करने आ गए हो....
कैसे?
लिबास इतने मैले तुम्हारी इंसानियत के है...
पानी भी घिन खा जाए..
दुर्गन्ध इतनी कर्मो मे है..
गंदे नाले की मछली भी मर जाए...!!

ये नारी बेचारी अबला कमसीन ...
थोड़ी भी शर्म ना आए...!
   आज बेघर जो माँ बाबा को किया है...
क्यों घर को तोड़ने का जिमा तुमने लिया है...!!
और ये बेटा...
   इसकी तो बात ना ही करो आप...
इससे अच्छे तो है आस्तीन मे पलते सांप..!!

मैं मेरा परिवार...
बूढ़े माँ बाबा को भूल गए ओ जाहिल इंसान...
क्यों कोई मजबूर ताऊम्र रहे वो किरदार...
  हमेशा तेरी वजेह से औलाद
   भूखे रहे है ना जाने कितने दिन वो माँ बाप..!!


क्या रूह नहीं कभी ग्लानि खाती..
कैसे मंदिर का रूख करते हो..
किस मुँह से ईश् की माला जपते हो...
जहां पापो का तुम्हारे कोई हो ना हिसाब
 फिर  
कैसे पूछ लेते हो पराओ से.......
कैसे है आप?
दर बदर भटक रहे हो जिनके माँ बाप..!!

बूढ़ी आंखो का दर्द क्या ना झलकता है..
कैसे उन्हें रुलाके कोई हंस सकता है....
बिखरे रिश्तों मे...
क्या कोई खण्डर बस सकता है...


गलती परवरिश की थी...
किसे दोष दे...
या किस्मत को तेरे जैसे औलाद पाने पे कोस दे....!!

©Shalini Pandit रूह तो काँप जाएगी एक बारी....
जब आएगी बेघर होने की तुम्हारी बारी।
नियति का चक्र है यही भुगतोगे...
अपने कर्मो से कहां कहां तक छिपोगे।


वृद्धा आश्रम एक कलंक है हर उस औलाद के लिए समाज के लिए, जिनके अपने होते हुए भी...कोई अपना नहीं।
शर्म आनी चाहिए.....
जो ज्ञान मुफ्त का बाट रहे..
उनकी उनके कर्मो पे चर्चा करवाती हूँ
जो साफ चेहरे लिए घूम रहे
सच्चाई से अभी धुलवाती हूँ....

माँ बाबा को छोड़ वृधाश्रम
गरीबों का दर्द चन्द सेल्फी के लिए।क्यों उजागर करने आ गए हो....
कैसे?
लिबास इतने मैले तुम्हारी इंसानियत के है...
पानी भी घिन खा जाए..
दुर्गन्ध इतनी कर्मो मे है..
गंदे नाले की मछली भी मर जाए...!!

ये नारी बेचारी अबला कमसीन ...
थोड़ी भी शर्म ना आए...!
   आज बेघर जो माँ बाबा को किया है...
क्यों घर को तोड़ने का जिमा तुमने लिया है...!!
और ये बेटा...
   इसकी तो बात ना ही करो आप...
इससे अच्छे तो है आस्तीन मे पलते सांप..!!

मैं मेरा परिवार...
बूढ़े माँ बाबा को भूल गए ओ जाहिल इंसान...
क्यों कोई मजबूर ताऊम्र रहे वो किरदार...
  हमेशा तेरी वजेह से औलाद
   भूखे रहे है ना जाने कितने दिन वो माँ बाप..!!


क्या रूह नहीं कभी ग्लानि खाती..
कैसे मंदिर का रूख करते हो..
किस मुँह से ईश् की माला जपते हो...
जहां पापो का तुम्हारे कोई हो ना हिसाब
 फिर  
कैसे पूछ लेते हो पराओ से.......
कैसे है आप?
दर बदर भटक रहे हो जिनके माँ बाप..!!

बूढ़ी आंखो का दर्द क्या ना झलकता है..
कैसे उन्हें रुलाके कोई हंस सकता है....
बिखरे रिश्तों मे...
क्या कोई खण्डर बस सकता है...


गलती परवरिश की थी...
किसे दोष दे...
या किस्मत को तेरे जैसे औलाद पाने पे कोस दे....!!

©Shalini Pandit रूह तो काँप जाएगी एक बारी....
जब आएगी बेघर होने की तुम्हारी बारी।
नियति का चक्र है यही भुगतोगे...
अपने कर्मो से कहां कहां तक छिपोगे।


वृद्धा आश्रम एक कलंक है हर उस औलाद के लिए समाज के लिए, जिनके अपने होते हुए भी...कोई अपना नहीं।
शर्म आनी चाहिए.....