Nojoto: Largest Storytelling Platform

तेरे कान मेरी पहुंच से बहुत दूर है कैसे बताऊं में

तेरे कान मेरी पहुंच से बहुत दूर है कैसे बताऊं में
अभी-अभी मेरे ज़हन में तेरे लिए उतरी है ग़ज़ल कैसे सुनाऊं में।

कई बार तू मेरे सामने ही होती है तुझे सुना देता हूं
पर बार-बार ऐसी कल्पना को कैसे बनाऊं में

 हिम्मत सिंह writing# thinking # Punjabi poetry# Hindi poetry# Urdu poetry#
तेरे कान मेरी पहुंच से बहुत दूर है कैसे बताऊं में
अभी-अभी मेरे ज़हन में तेरे लिए उतरी है ग़ज़ल कैसे सुनाऊं में।

कई बार तू मेरे सामने ही होती है तुझे सुना देता हूं
पर बार-बार ऐसी कल्पना को कैसे बनाऊं में।                                                      
                                                  हिम्मत सिंह
तेरे कान मेरी पहुंच से बहुत दूर है कैसे बताऊं में
अभी-अभी मेरे ज़हन में तेरे लिए उतरी है ग़ज़ल कैसे सुनाऊं में।

कई बार तू मेरे सामने ही होती है तुझे सुना देता हूं
पर बार-बार ऐसी कल्पना को कैसे बनाऊं में

 हिम्मत सिंह writing# thinking # Punjabi poetry# Hindi poetry# Urdu poetry#
तेरे कान मेरी पहुंच से बहुत दूर है कैसे बताऊं में
अभी-अभी मेरे ज़हन में तेरे लिए उतरी है ग़ज़ल कैसे सुनाऊं में।

कई बार तू मेरे सामने ही होती है तुझे सुना देता हूं
पर बार-बार ऐसी कल्पना को कैसे बनाऊं में।                                                      
                                                  हिम्मत सिंह
himmatsingh7299

Himmat Singh

New Creator

writing# thinking # Punjabi poetry# Hindi poetry# Urdu poetry# तेरे कान मेरी पहुंच से बहुत दूर है कैसे बताऊं में अभी-अभी मेरे ज़हन में तेरे लिए उतरी है ग़ज़ल कैसे सुनाऊं में। कई बार तू मेरे सामने ही होती है तुझे सुना देता हूं पर बार-बार ऐसी कल्पना को कैसे बनाऊं में। हिम्मत सिंह