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तेरे कान मेरी पहुंच से बहुत दूर है कैसे बताऊं में
अभी-अभी मेरे ज़हन में तेरे लिए उतरी है ग़ज़ल कैसे सुनाऊं में।
कई बार तू मेरे सामने ही होती है तुझे सुना देता हूं
पर बार-बार ऐसी कल्पना को कैसे बनाऊं में।
हिम्मत सिंह