कुछ हसरतें हैं मेरी, क्या तुम पूरी करोगी ? क्या मेरे खातिर अपने अहंकार से दूरी करोगी ? आम सा लड़का हूँ, आम है ख़्वाहिशात मेरी, क्या इस आम को अहम बनाना, मकसद ज़रूरी करोगी ? यह पलकें भीग भीग कर खुद ही सूख जाया करती है अब, अपने चेहरे के नूर से, मेरे सुकून की मंज़ूरी करोगी ? यह दिल तुमपर टिका, नज़रें तुम्हारी इर्द गिर्द भटकती है, क्या तुम भी अपनी दीदार मुझ पर अंकूरी करोगी ? कभी सुन लो यह इल्तिजा, जो किया करता है कासिम, शायद तुम भी फिर, इस दुनिया से अवचूरी करोगी। Kuch hasratein hain meri, kya tum puri karogi ? Kya mere khatir apne ego se tum doori karogi ? Aam sa ladka hoon, aam hai khwahishaat meri, Kya is aam ko ahem banana maksad zaroori karogi ? K palkein bheeg bheeg kar khud hi sukh jaaya krti hai ab,