"*#* हे पुस्तक *#*" हे पुस्तक तू ही तो दर्पण तू ही तो तर्पण तू ही मेरे कृपाण तू ही मेरे जीवन के व्याकरण तू ही मेरे हाथों के बाण तेरे जो आया शरण कर्म को किया अर्पण खुद को किया समर्पण उसके दु:खों को किया तुने हरण तेरा जो किया प्रण वह रह न सका मन से रुग्ण उसके हुए नये अवतरण ------ ANAND KUMAR #हेपुस्तक