कश्मकश औ जद्दोजहद में सारी रात गुजर गई तो, क्या सपने आवारा है । मन में बस तेरी सूरत, जेहन में तस्वीर तुम्हारी, आँख बगावत सी करती, नींद अब कहाँ आती है, जज़्बात नहीं सम्भलते, क्या सपने आवारा हैं । मैं भी न बस अपनी ही, सुनाता रहा सारी बातें, पूछा भी नहीं कि याद हूँ या भुला दिया है तुमने अपने इस आवारा को । कश्मकश औ जद्दोजहद में सारी रात गुजर गई तो, क्या सपने आवारा है । मन में बस तेरी सूरत, जेहन में तस्वीर तुम्हारी, आँख बगावत सी करती,