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कश्मकश औ जद्दोजहद में सारी रात गुजर गई तो, क्या सप

कश्मकश औ
जद्दोजहद में
सारी रात गुजर गई तो,
क्या सपने आवारा है ।

मन में बस तेरी सूरत,
जेहन में तस्वीर तुम्हारी,
आँख बगावत सी करती,
नींद अब कहाँ आती है,
जज़्बात नहीं सम्भलते,
क्या सपने आवारा हैं ।

मैं भी न बस अपनी ही,
सुनाता रहा सारी बातें,
पूछा भी नहीं कि याद हूँ
या भुला दिया है तुमने
अपने इस आवारा को । कश्मकश औ
जद्दोजहद में
सारी रात गुजर गई तो,
क्या सपने आवारा है ।

मन में बस तेरी सूरत,
जेहन में तस्वीर तुम्हारी,
आँख बगावत सी करती,
कश्मकश औ
जद्दोजहद में
सारी रात गुजर गई तो,
क्या सपने आवारा है ।

मन में बस तेरी सूरत,
जेहन में तस्वीर तुम्हारी,
आँख बगावत सी करती,
नींद अब कहाँ आती है,
जज़्बात नहीं सम्भलते,
क्या सपने आवारा हैं ।

मैं भी न बस अपनी ही,
सुनाता रहा सारी बातें,
पूछा भी नहीं कि याद हूँ
या भुला दिया है तुमने
अपने इस आवारा को । कश्मकश औ
जद्दोजहद में
सारी रात गुजर गई तो,
क्या सपने आवारा है ।

मन में बस तेरी सूरत,
जेहन में तस्वीर तुम्हारी,
आँख बगावत सी करती,
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