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एक खूबसूरत रात (अनुशीर्षक में पढ़ें) एक खूबसूरत

एक खूबसूरत रात 

(अनुशीर्षक में पढ़ें) एक खूबसूरत रात 
पूनम की वो रात थी। चाँद अपनी चाँदनी पुरज़ोर बिखेर रहा था। मदमस्त था आलम। कितना खूबसूरत था समा। मैं अकेले घर में खिड़की के पास बैठकर चाय और मौसम का आनंद ले रही थी। ठण्डी पुरवाई चल रही थी जिसके मेरे गालों पर स्पर्श स्पर्श से असीम सुख की अनुभूति मुझे हो रही थी। 
पर इस सुख के साथ एक पीड़ा भी महसूस कर रही थी मैं। ऐसे मौसम में मैं अकेली जो थी।  कोई नहीं था साथ मेरे जिससे अपनी खुशी साँझा कर सकूँ, अपने दिल की बात कह सकूँ। पति अब रहे नहीं और बच्चे अपनी दुनिया में मशगूल थे। अपनी नौकरी, घर बार भी देखना जो था उनको। कोई कब तक साथ रह सकता है किसी के। अकेले रहने का निर्णय भी तो मेरा था। बच्चों ने तो कहा था कि मैं उनके साथ ही रहूँ। पर मुझे किसी बंधन में रहने की आदत नहीं थी। 
ज़हन में यादों का कारवां चल निकला। याद आ गईं मुझे वो दर्द भरी घटनाएँ जिन्होंने मुझे तोड़ के रख दिया था। वो दुख भरे लम्हे जब ईश्वर से मैं सवाल करती तो कि आखिर मैं ही क्यूँ? मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ हो रहा है? मैंने तो सपनों में भी किसी का बुरा नहीं चाहा था, फ़िर मेरे प्रेम के बदले इस असहनीय प्रताड़ना को क्यूँ मुझे सहना पड़ रहा है। इस सब के बावजूद मैंने हमेशा कोशिश की कि घर का माहौल ठीक रहे। बच्चों के मासूम हृदय पर कोई नकारात्मक प्रभाव ना पड़े। सब कुछ बर्दाश्त किया पर उफ्फ तक ना की। 
पर कहते हैं ना ताली एक हाथ से नहीं बजती। आपके विचारों का साथ देने के लिए एक संवेदनशील साथी भी तो चाहिए। पर जब सामने वाला कुछ समझना ही ना चाहे तो कोई क्या ही कर सकता है। ऐसे ही कई वर्ष बीत गए, बेइज्जती सहते, गिरते- उठते। फ़िर जब सब बर्दाश्त से बाहर हो गया तो सब कुछ मुझे आखिर सब छोड़ना पड़ा। ख़ुद को मैंने समझाया कि ऐसे कब तक चलेगा।  मुझे भी खुश रहना था, बच्चों को भी खुशियाँ देनी थी। वहाँ से निकालना आसान नहीं था मेरे लिए। समाज क्या कहेगा, क्या मैं अकेले रह पाऊँगी, ये सवाल मुझे परेशान करते थे। पर फ़िर मैंने हिम्मत जुटाई और वहाँ से निकलने का ठोस कदम मैंने उठा ही लिया आख़िर। और तबसे मैं वाकई खुश हूँ। परिवार और दोस्तों का भरपूर साथ मिला मुझे। मुझे खुद के बलबूते जीना आ ही गया। 
खैर, मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं। जो भी हुआ शायद वो ही मेरी किस्मत थी। अपने ख़्यालों को मैंने समेटा और फ़िर से उस पूनम की खूबसूरत रात का मैं आनंद लेने लगी। 
ये सब सोचते सोचते समय का भान ही ना हुआ मुझे। 
मेरी तन्द्रा टूटी जब पानी की कुछ बूंदे मुझ पर पड़ीं।यकायक चाँद बादलों में छुप गया और बारिश होनी शुरू हो गई। क्यूँकि मुझे बारिश बेहद पसंद है, बाहर जाकर उसमें भीगने से मैं ख़ुद को ना रोक सकी। जो मैं महसूस कर रही थी उस समय, उसे शब्दों में बयान करना बहुत ही मुश्किल है। पानी से जब पूरी तरह से मैं भीग गई तो लगा जैसे सारा दर्द, सारी तकलीफ पानी में घुल के बह गई। दर्द का नामोनिशान ना रहा। वो उस रात का असर था या बारिश की बूँदों का, मैं खुद में बहुत अच्छा महसूस करने लगी।
एक खूबसूरत रात 

(अनुशीर्षक में पढ़ें) एक खूबसूरत रात 
पूनम की वो रात थी। चाँद अपनी चाँदनी पुरज़ोर बिखेर रहा था। मदमस्त था आलम। कितना खूबसूरत था समा। मैं अकेले घर में खिड़की के पास बैठकर चाय और मौसम का आनंद ले रही थी। ठण्डी पुरवाई चल रही थी जिसके मेरे गालों पर स्पर्श स्पर्श से असीम सुख की अनुभूति मुझे हो रही थी। 
पर इस सुख के साथ एक पीड़ा भी महसूस कर रही थी मैं। ऐसे मौसम में मैं अकेली जो थी।  कोई नहीं था साथ मेरे जिससे अपनी खुशी साँझा कर सकूँ, अपने दिल की बात कह सकूँ। पति अब रहे नहीं और बच्चे अपनी दुनिया में मशगूल थे। अपनी नौकरी, घर बार भी देखना जो था उनको। कोई कब तक साथ रह सकता है किसी के। अकेले रहने का निर्णय भी तो मेरा था। बच्चों ने तो कहा था कि मैं उनके साथ ही रहूँ। पर मुझे किसी बंधन में रहने की आदत नहीं थी। 
ज़हन में यादों का कारवां चल निकला। याद आ गईं मुझे वो दर्द भरी घटनाएँ जिन्होंने मुझे तोड़ के रख दिया था। वो दुख भरे लम्हे जब ईश्वर से मैं सवाल करती तो कि आखिर मैं ही क्यूँ? मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ हो रहा है? मैंने तो सपनों में भी किसी का बुरा नहीं चाहा था, फ़िर मेरे प्रेम के बदले इस असहनीय प्रताड़ना को क्यूँ मुझे सहना पड़ रहा है। इस सब के बावजूद मैंने हमेशा कोशिश की कि घर का माहौल ठीक रहे। बच्चों के मासूम हृदय पर कोई नकारात्मक प्रभाव ना पड़े। सब कुछ बर्दाश्त किया पर उफ्फ तक ना की। 
पर कहते हैं ना ताली एक हाथ से नहीं बजती। आपके विचारों का साथ देने के लिए एक संवेदनशील साथी भी तो चाहिए। पर जब सामने वाला कुछ समझना ही ना चाहे तो कोई क्या ही कर सकता है। ऐसे ही कई वर्ष बीत गए, बेइज्जती सहते, गिरते- उठते। फ़िर जब सब बर्दाश्त से बाहर हो गया तो सब कुछ मुझे आखिर सब छोड़ना पड़ा। ख़ुद को मैंने समझाया कि ऐसे कब तक चलेगा।  मुझे भी खुश रहना था, बच्चों को भी खुशियाँ देनी थी। वहाँ से निकालना आसान नहीं था मेरे लिए। समाज क्या कहेगा, क्या मैं अकेले रह पाऊँगी, ये सवाल मुझे परेशान करते थे। पर फ़िर मैंने हिम्मत जुटाई और वहाँ से निकलने का ठोस कदम मैंने उठा ही लिया आख़िर। और तबसे मैं वाकई खुश हूँ। परिवार और दोस्तों का भरपूर साथ मिला मुझे। मुझे खुद के बलबूते जीना आ ही गया। 
खैर, मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं। जो भी हुआ शायद वो ही मेरी किस्मत थी। अपने ख़्यालों को मैंने समेटा और फ़िर से उस पूनम की खूबसूरत रात का मैं आनंद लेने लगी। 
ये सब सोचते सोचते समय का भान ही ना हुआ मुझे। 
मेरी तन्द्रा टूटी जब पानी की कुछ बूंदे मुझ पर पड़ीं।यकायक चाँद बादलों में छुप गया और बारिश होनी शुरू हो गई। क्यूँकि मुझे बारिश बेहद पसंद है, बाहर जाकर उसमें भीगने से मैं ख़ुद को ना रोक सकी। जो मैं महसूस कर रही थी उस समय, उसे शब्दों में बयान करना बहुत ही मुश्किल है। पानी से जब पूरी तरह से मैं भीग गई तो लगा जैसे सारा दर्द, सारी तकलीफ पानी में घुल के बह गई। दर्द का नामोनिशान ना रहा। वो उस रात का असर था या बारिश की बूँदों का, मैं खुद में बहुत अच्छा महसूस करने लगी।
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Poonam Suyal

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