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कल ​साँझ ढ़ले, ​श्वेत कौमुदी की, ​चंचल किरणों तले,

कल 
​साँझ ढ़ले,
​श्वेत कौमुदी की,
​चंचल किरणों तले,
​हिमाच्छादित हिमालय की,
​चोटी से,
​दुग्ध लेपित गंगा का निर्मल जल,
​बहकर जा पहुंचा,
​काशी विश्वनाथ के पग धोने, कल 
​साँझ ढ़ले,
​श्वेत कौमुदी की,
​चंचल किरणों तले,
​हिमाच्छादित हिमालय की,
​चोटी से,
​दुग्ध लेपित गंगा का निर्मल जल,
​बहकर जा पहुंचा,
कल 
​साँझ ढ़ले,
​श्वेत कौमुदी की,
​चंचल किरणों तले,
​हिमाच्छादित हिमालय की,
​चोटी से,
​दुग्ध लेपित गंगा का निर्मल जल,
​बहकर जा पहुंचा,
​काशी विश्वनाथ के पग धोने, कल 
​साँझ ढ़ले,
​श्वेत कौमुदी की,
​चंचल किरणों तले,
​हिमाच्छादित हिमालय की,
​चोटी से,
​दुग्ध लेपित गंगा का निर्मल जल,
​बहकर जा पहुंचा,
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