भीतर एक शोर ,जो गुमसुम सा है कहीं दूर बजती ,बाँसुरी की धुन सा है कभी दूर जाता ,कभी पास आता हुआ किसी शायर की ,अधूरी नज़्म सा है शहर-दर-शहर भटकता हुआ,ये रेत में पानी के वहम सा है, हर आईने में अपनें अक्स को ढूंढ़ता हुआ,ये इश्क की अधूरी कसम सा है सर्दियों की सुबह में नर्म धूप सा,ये घास पे बिखरी शबनम सा है, कभी लहराता,कभी थर-थराता हुआ ये शोर मेरे सनम सा है… #shore #sufi #ahsaas #lovepoetry #lifepoetry #hindipoetry #hindishayari #yqdidi