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बह रही है बयार खुशियों की,आहिस्ता-आहिस्ता ही सही,

बह रही है बयार खुशियों की,आहिस्ता-आहिस्ता ही सही,
बढ रही है जिंदगी उद्गम की ओर,आहिस्ता-आहिस्ता ही सही।

भंवर भी मिले तूफान भी छंटे, कभी बिछड़े तो कभी फिर से भी मिले,
कुछ बूंद अश्कों कें संग, खुशियों के परनाले  भी बहे।

संवर रही है जिंदगी अपनों के संग, आहिस्ता-आहिस्ता ही सही,
बढ रही है जिंदगी उद्गम की ओर, आहिस्ता-आहिस्ता ही सही।

कभी छुप-छुप के रोये, कभी बिंदास ठहाके लगाये,
हर्षोल्लास में डूबे कभी, किसी को कभी कंधे लगाये।
समझ रहे हैं जिंदगी को नजदीक से,आहिस्ता-आहिस्ता ही सही,
बढ रही है जिंदगी उद्गम की ओर, आहिस्ता-आहिस्ता ही सही।

©Anand Prakash Nautiyal tnautiyal
  #dost#जिंदगी#आहिस्ता-आहिस्ता