मोहब्बत के नाटक में न जाने कितनो की जिंदगी के साथ खेले हैं करके जिस्मो को इस्तेमाल छोड़ देते फिर अकेले हैं।। ये खेल मुझको कभी नही आया। आज ये तो कल उसके साथ बिताया।। सच कहूँ तो भरोसा ही उठ गया मेरा सबसे। यहाँ हर चहरे पर मैने नकाब जो पाया।। में बचपन से होनहार स्टूडेंट हमेशा रहा पर में आवारा बच्चो का भी सरदार रहा हूं । आवारगी की नही पर सभी की सुनी देखी और जानी है ।