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शहर से गुजरते हुए.. कुछ अजीब से हालात दिखे, शहर

शहर से गुजरते हुए..

कुछ अजीब से हालात दिखे, 
शहर से गुजरते हुए..
न एक दूसरे की पहचान, 
न एक दूसरे पर भरोसा, 
हर एक है पैसों की दौड़ में, 
हर एक पे छाया ताकत का नशा।
इंसान इंसान नहीं रोबोट बन गया है, 
पागलों की तरह काम कर रहा है। 
मशीनों में रहकर मशीन हो गया है, 
मशीन की तरह व्यवहार कर रहा है। 
पास में कौन रहता है उसकी खबर नहीं, 
दुनिया में क्या हो रहा है उसका पता है। 
एक ही शहर में अपने मां बाप से दूर रहता है, 
सुबह शाम बस उनके लिए खाना भेज देता है। 
रिश्तो का मरना यहां आम सी बात है क्योंकि, 
रिश्तो का चलन यहां जरूरतों के साथ है। 
दोस्ती नहीं यहां प्रतियोगिताएं ज्यादा है, 
आदमी यहां हर रोज नए दुश्मन बनाता है।
हर घटिया चीज का यहां व्यापार होता है, 
चीजों का क्या यहां तो इंसान बिकता है। 
त्योहारों के नाम पर राजनीति खेल होता है, 
चुनाव के वक्त राजनेता सब के पैर धोता है। 
कंक्रीट के जंगल कुदरत पर हंसते हैं, 
बरसाती बादल अब यहां नहीं गरजते हैं। 
आदमी पेड़ों का महत्व भूल गया है इसीलिए, 
पेड़ों ने यहां से अब अलविदा कह दिया है। 
कब पैसे और ताकत की दौड़ खत्म होगी, 
कब इंसानियत कुदरत की और मुड़ेगी। #शहर_से_गुजरते_हुए..

कुछ अजीब से हालात दिखे, 
शहर से गुजरते हुए..
न एक दूसरे की पहचान, 
न एक दूसरे पर भरोसा, 
हर एक है पैसों की दौड़ में, 
हर एक पे छाया ताकत का नशा।
शहर से गुजरते हुए..

कुछ अजीब से हालात दिखे, 
शहर से गुजरते हुए..
न एक दूसरे की पहचान, 
न एक दूसरे पर भरोसा, 
हर एक है पैसों की दौड़ में, 
हर एक पे छाया ताकत का नशा।
इंसान इंसान नहीं रोबोट बन गया है, 
पागलों की तरह काम कर रहा है। 
मशीनों में रहकर मशीन हो गया है, 
मशीन की तरह व्यवहार कर रहा है। 
पास में कौन रहता है उसकी खबर नहीं, 
दुनिया में क्या हो रहा है उसका पता है। 
एक ही शहर में अपने मां बाप से दूर रहता है, 
सुबह शाम बस उनके लिए खाना भेज देता है। 
रिश्तो का मरना यहां आम सी बात है क्योंकि, 
रिश्तो का चलन यहां जरूरतों के साथ है। 
दोस्ती नहीं यहां प्रतियोगिताएं ज्यादा है, 
आदमी यहां हर रोज नए दुश्मन बनाता है।
हर घटिया चीज का यहां व्यापार होता है, 
चीजों का क्या यहां तो इंसान बिकता है। 
त्योहारों के नाम पर राजनीति खेल होता है, 
चुनाव के वक्त राजनेता सब के पैर धोता है। 
कंक्रीट के जंगल कुदरत पर हंसते हैं, 
बरसाती बादल अब यहां नहीं गरजते हैं। 
आदमी पेड़ों का महत्व भूल गया है इसीलिए, 
पेड़ों ने यहां से अब अलविदा कह दिया है। 
कब पैसे और ताकत की दौड़ खत्म होगी, 
कब इंसानियत कुदरत की और मुड़ेगी। #शहर_से_गुजरते_हुए..

कुछ अजीब से हालात दिखे, 
शहर से गुजरते हुए..
न एक दूसरे की पहचान, 
न एक दूसरे पर भरोसा, 
हर एक है पैसों की दौड़ में, 
हर एक पे छाया ताकत का नशा।