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कुछ भी कहते रहते हो । तुम कितने पागल हो लफ्ज तुम

कुछ भी कहते रहते हो ।

तुम कितने पागल हो लफ्ज
तुम कुछ भी कहते रहते हो 

सबके सामने तो चुप रहते हो मुमकिन है कुछ मुझसे भी तो बातें करो लफ्ज
ये ख्यालों में मुझसे क्या क्या कहते रहते हो

आज कल वो भी मेहफिलयें लगाते फिरते है जिन्हें इल्म नही शायरी क्या है
तुम भी पागल हो लफ्ज किस किस को शायर कहते रहते हो।

न तुम काफ़िया निभते हो न ही रदीफ़ देखते हो लफ्ज
तुम जाहिल हो किस किस को ग़ज़ल कहते रहते हो ।

तुम हर किसी से बयान करते हो राजे दिल
बड़े मासूम हो लफ्ज किस किस को अपना अहबाब कहते रहते हो

सौ कमियां है उसमें लफ्ज लाजमी है उसका इंसा होना
तुम बावरे हो जो उसको खुदा कहते रहते हो।


मुनासिब है तेरे दर्द का तेरी आँखों में उतार आना अच्छे अदाकार हो लफ्ज जो उसको पानी कहते रहते हो ।

वो भी तो किसी मज़बूरी की मारी होगी
बड़े बैगेरात हो लफ्ज जो उसको बेवफा कहते रहते हो।

महोब्बत है तो उसको समझना भी लाजमी है बड़े दिलफेंक हो लफ्ज जो दिल्लगी को महोब्बत कहते रहते हो

वो नही दर्द नही कुछ महसूस नही होता तेरे ख्वाब सारे मर चुके
 तुम झूठे हो लफ्ज जो खुद को जिन्दा कहते रहते हो
 
रचनाकार - 
संतोष कुमार
पंजाब विश्वविधल्या 
चंडीगढ़ #Shayri#love#poetry#gazal#dard#bewafai#mahobbat
कुछ भी कहते रहते हो ।

तुम कितने पागल हो लफ्ज
तुम कुछ भी कहते रहते हो 

सबके सामने तो चुप रहते हो मुमकिन है कुछ मुझसे भी तो बातें करो लफ्ज
ये ख्यालों में मुझसे क्या क्या कहते रहते हो

आज कल वो भी मेहफिलयें लगाते फिरते है जिन्हें इल्म नही शायरी क्या है
तुम भी पागल हो लफ्ज किस किस को शायर कहते रहते हो।

न तुम काफ़िया निभते हो न ही रदीफ़ देखते हो लफ्ज
तुम जाहिल हो किस किस को ग़ज़ल कहते रहते हो ।

तुम हर किसी से बयान करते हो राजे दिल
बड़े मासूम हो लफ्ज किस किस को अपना अहबाब कहते रहते हो

सौ कमियां है उसमें लफ्ज लाजमी है उसका इंसा होना
तुम बावरे हो जो उसको खुदा कहते रहते हो।


मुनासिब है तेरे दर्द का तेरी आँखों में उतार आना अच्छे अदाकार हो लफ्ज जो उसको पानी कहते रहते हो ।

वो भी तो किसी मज़बूरी की मारी होगी
बड़े बैगेरात हो लफ्ज जो उसको बेवफा कहते रहते हो।

महोब्बत है तो उसको समझना भी लाजमी है बड़े दिलफेंक हो लफ्ज जो दिल्लगी को महोब्बत कहते रहते हो

वो नही दर्द नही कुछ महसूस नही होता तेरे ख्वाब सारे मर चुके
 तुम झूठे हो लफ्ज जो खुद को जिन्दा कहते रहते हो
 
रचनाकार - 
संतोष कुमार
पंजाब विश्वविधल्या 
चंडीगढ़ #Shayri#love#poetry#gazal#dard#bewafai#mahobbat