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राजनीति के अपराधीकरण को रोकना कितना कठिन है किसका

राजनीति के अपराधीकरण को रोकना कितना कठिन है किसका परिणाम है चुनाव की घोषणा होते ही कई ऐसे दागी नेताओं का प्रत्याशी के रूप में सामान आ जाना जिन पर संगी आरोपी इसमें से कुछ तो ऐसे हैं जिन पर थूक के भाव मुकदमे दर्ज हैं और वे हत्या भी लूटपाट जमीन कब जाने के लिए धोखाधड़ी और दंगा करने तक के ऐसे अपराध अतीत वाले लोगों तक प्रत्याशी बंद जा रहे हैं जब निर्वाचन आयोग ने यह कहा रखा है कि राजनीतिक दलों में ऐसी दागी नेताओं को भी द्वार बनाने पर ना केवल इसका कारण बताना होगा बल्कि उसकी सूचना समाचार पत्रों अन्य मीडिया माध्यमों के जरिए सार्वजनिक करनी होगी पश्चिम उत्तर प्रदेश में जिस तरह गंभीर आरोप का सम्मान कर रहे नेताओं को उम्मीदवार बना दिया गया है उससे यह साफ निर्वाचन आयोग के निर्देश कहीं कोई प्रभा की गई है कोई भी समझ सकता है कि परावा इसलिए नहीं की गई है क्योंकि निर्वाचन आयोग के पास ऐसे अधिकारी नहीं है कि वह अपने निर्देश की अनदेखी करने वाले दलों को खंडित कर सके यह अच्छी बात है कि सुप्रीम कोर्ट उस याचिका के जल्द सुनवाई करने के लिए तैयार हो गई जिसमें यह मांग की गई कि अपराधिक पृष्ठभूमि वालों को चुनाव मैदान में उतारने वाले राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द की जाए कहना कठिन है कि यह याचिका की सुनवाई करते समय सुप्रीम कोर्ट के किस नतीजे पर पहुंचेगी लेकिन यह स्पष्ट है कि निर्वाचन आयोग की ठोस अधिकार नहीं दिया गया तो दागी छवि वालों की चुनाव मैदान में उतारने से मुश्किलें ही होंगी इन सदर में उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती निर्वाचन आयोग का अर्थ से मांग कर रहे हैं कि गंभीर आरोप का सामना कर रहे हैं

©Ek villain # चुनावी मैदान में अपराधी

#jail
राजनीति के अपराधीकरण को रोकना कितना कठिन है किसका परिणाम है चुनाव की घोषणा होते ही कई ऐसे दागी नेताओं का प्रत्याशी के रूप में सामान आ जाना जिन पर संगी आरोपी इसमें से कुछ तो ऐसे हैं जिन पर थूक के भाव मुकदमे दर्ज हैं और वे हत्या भी लूटपाट जमीन कब जाने के लिए धोखाधड़ी और दंगा करने तक के ऐसे अपराध अतीत वाले लोगों तक प्रत्याशी बंद जा रहे हैं जब निर्वाचन आयोग ने यह कहा रखा है कि राजनीतिक दलों में ऐसी दागी नेताओं को भी द्वार बनाने पर ना केवल इसका कारण बताना होगा बल्कि उसकी सूचना समाचार पत्रों अन्य मीडिया माध्यमों के जरिए सार्वजनिक करनी होगी पश्चिम उत्तर प्रदेश में जिस तरह गंभीर आरोप का सम्मान कर रहे नेताओं को उम्मीदवार बना दिया गया है उससे यह साफ निर्वाचन आयोग के निर्देश कहीं कोई प्रभा की गई है कोई भी समझ सकता है कि परावा इसलिए नहीं की गई है क्योंकि निर्वाचन आयोग के पास ऐसे अधिकारी नहीं है कि वह अपने निर्देश की अनदेखी करने वाले दलों को खंडित कर सके यह अच्छी बात है कि सुप्रीम कोर्ट उस याचिका के जल्द सुनवाई करने के लिए तैयार हो गई जिसमें यह मांग की गई कि अपराधिक पृष्ठभूमि वालों को चुनाव मैदान में उतारने वाले राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द की जाए कहना कठिन है कि यह याचिका की सुनवाई करते समय सुप्रीम कोर्ट के किस नतीजे पर पहुंचेगी लेकिन यह स्पष्ट है कि निर्वाचन आयोग की ठोस अधिकार नहीं दिया गया तो दागी छवि वालों की चुनाव मैदान में उतारने से मुश्किलें ही होंगी इन सदर में उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती निर्वाचन आयोग का अर्थ से मांग कर रहे हैं कि गंभीर आरोप का सामना कर रहे हैं

©Ek villain # चुनावी मैदान में अपराधी

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