उन्मुक्त होकर उड़ने नहीं देते, निडरता से मुक्त आकाश में। बना कर रख लेना चाहते हैं! पिंजरे का पंछी अधिवास में। ये बंधन तोड़ने छटपटाती हूँ, लड़-झगड़ बिखर जाती हूँ। सुनो!ये सामाजिक दायरे- मुझसे छीन लेते हैं स्तंत्रता! और मुझे कर देते है-तुम पर, निर्भर--- जब तुम मुझे मुक्त करते हो, देते हो उड़ने आकाश- तो लगता है दुनिया मैं ही तो, चला रही हूँ। 🎀 Challenge-403 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। अपने शब्दों में अपनी रचना लिखिए।