आजकल मुझे फ़र्क नही पड़ता, लोगो के चले जाने से, किसी के वादा ना निभाने से, दोस्तों के लौट के ना आने से, अपनों के बदल जाने से, किसी को मन की ना कह पाने से, समाज के रूठ जाने से, मेरा नाम भूल जाने से, रिश्तों के टूट जाने से, यूं तो पहले बिखर जाती थी मैं, हर इक कहानी से, पर कुछ दिनों से स्वार्थी सी हो रही हूं मैं, लगता है खुद के लिए जीने लगी हूं मैं, हां सच ही तो है आजकल, मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता! आजकल सिर्फ़ खुद के लिए जीने का मन करने लगा है, बिना किसी परवाह के..क्या ये ग़लत है? आजकल मुझे फ़र्क नही पड़ता, लोगो के चले जाने से, किसी के वादा ना निभाने से, दोस्तों के लौट के ना आने से, अपनों के बदल जाने से, किसी को मन की ना कह पाने से, समाज के रूठ जाने से,