रस्ता और गाँव वो गांव, वो रस्ता देख रहा है कोई लौट के आयेगा वो लहराते खेतों को,कोई मिलन के गीत सुनायेगा वो चिड़ियों का चहचहाना ,वो मुर्गें का बांग लगाना बैठ के बैलगाड़ी पर कोई अपना आंचल लहरायेगा कोई तपती धूप में जिस्म से पसीना पानी सा बहा दे खाने की गठरी सर पर रख कोई कमर लचकायेगा वो शाम को सूरज का आकर धरती से मिल जाना कोई फिर चौपाल में रात को नई नौटंकी रचायेगा एक आस अभी भी यूंही आती है सीने में आमिल वो गांव, वो रस्ता देख रहा है कोई लौट के आयेगा आमिल Wo gaanv,wo rasta dekh rha hai koi lout ke aayega Wo lehraate khaitto ko ,koi milan ke geet sunayega Wo chidiya ka chehchahana,wo murge ka baang lagana Baith ke bailgaadi pr koi apna aanchal lehrayega Koi tapti dhoop mai jism se paseena paani sa bahaa de Khaane ki gadthri sar pr rakh koi kamar lachkayega