या कि फिर समाज इतना विवेकी,जागरूक व मजबूत हो जाये कि ऐसे जंगलियों का सब मिलकर बहिष्कार कर सके।समाज की यही तो कमी या कमजोरी कहें कि जब तक आँच खुद तक, खुद के परिवार तक नहीं आती, संवेदन हीन होकर ,मूक दर्शक बना झाँकता रहता है। ज्यादातर ये अपराधी पास-पड़ौसी या परिचित ही होते हैं तो क्यों पुलिस और अदालत का मुँह देखना, -जहाँ अंत तक मुँह ही देखते रहना है-सब पास पड़ौसी ही मिलकर इतनी पिटाई करें कि जीवन भर वह तिल-तिल मरता रहे।अभी कुछ ,कानून हाथ में लेने की बात कहेंगे।क्यों, आपसी लड़ाई झगड़े, नालियां, जमीन जायदाद के मामलों में तो बहुत कानून हाथ में लेते हैं। सिर फुटौव्वल होते हैं।तब कौन पीछे हटता है?सब परिजन, रिश्ते नातेदार, पास पड़ौसी साथ हो जाते हैं।मुकदमे चलते रहते हैं। ©अंजलि जैन #बलात्कारियों को मार डालो#०१.१०.२० #Stoprape