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बरसात का यह मौसम जब आ जाता है मुझे तेरे पास ले जा

 बरसात का यह मौसम जब आ जाता है मुझे तेरे पास ले जाता है।

 रिमझिम बरसती काली घटाएं लगती है ऐसे मानो खोल ली हो  तुमने  भीगी हुई अपनी जुल्फें जैसे ,
फिर तेरी जुल्फों से खेलने की खातिर यह मौसम मुझे  तेरे ख्यालों में ले जाता है।
 कोसो दूर होकर भी   मुझे तेरे पास होने का एहसास दिलाता है।
कमबख्त यह बरसात का मौसम जब आता है मुझे तेरे पास ले जाता है।
जब गरजती है बिजलियां तो लगता है ऐसे खेल रहे हों तेरे गालों के संग कानों में पहने झुमके जैसे,
फिर जब बरसात का मौसम पानी की बूंदों के संग खेल कर अपना रंग दिखाता है।
 फिर खुशबू बनकर बरसात का पानी मुझे तेरे  प्यार का  एहसास करवाता है।
यह वैरी मेरा बरसात का मौसम जब आता है मुझे तेरे पास ले जाता है।
जब छनक छनक कर गिरती है बूंदे धरती पर ऐसे,
तब लगता है चल रही हो तुम पाओं में पहन पायल जैसे,
फिर बैठ अकेला कमरे में जब मैं रात को मौसम आत्मिक शांति का अहसास करवाता है।
रुक जाती है बरसात तब आसमान में चांद अपना दीदार करवाता है।
फिर चांद के ऊपर बना दाग है जो वह मुझे तेरे हसीन से सावले मुख पर होठों के पास वाले तिल की याद करवाता है।

सच मानो तब यह बरसात का मौसम इस मुसाफ़िर से शायर को बड़ा पसंद आता है।

©Musafir ke ehsaas
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