कल तक मेरे अपने थे, आज पराये बैठे हैं, भाई बंधु अंकल आंटी, सब के सब इक जैसे हैं। कुछ बोले मैं बिज़ी हूँ, कुछ आँख चुराए रहते हैं। पूरे इक भी होते नहीं, कैसे कैसे सपने हैं। तन्हाई से रिश्ता जोड़ो, वो ही सच्चे अपने हैं। हक़ीक़त से ताल्लुक़ रखते कुछ मिसरे। ** है तो ये ग़ज़ल फॉरमेट में, मगर इसे ग़ज़ल कहना तौहीन होगी। क्योंकि बस ये ऐसे ही लिख दिया। साहित्य पटल पर इसकी कोई बिसात नहीं होगी। ~ इकराश़ #ग़ज़ल_ए_इकराश़ #इकराश़नामा #YqBaba #YqDidi