किशोरावस्था, उम्र के बदलाव के साथ भावनाओं, कल्पनाओं औऱ सपनों की उमड़ती, उफनती नदी है जिसके मज़बूत किनारे माता-पिता होते हैं।किशोरावस्था उनसे टकरा-टकरा कर, उफनकर बाहर निकल जाना चाहती है और उन्हीं को अपने मार्ग की सबसे बड़ी बाधा या रुकावट समझती है पर नहीं, ये दो किनारे ही तो हैं जो उस विकट अवस्था रूपी नदी को मार्ग भटकने से रोकते हैं। उन्हें कभी गलत न समझें, ग़लत तो होते हैं स्वयं किशोर, जिनका हृदय इस अवस्था में बहुत ही कोमल और भावुक हो जाता है और मनचाहा हर कार्य करना चाहता है ,उचित-अनुचित का विचार किये बिना। उचित-अनुचित की रोक-टोक जो माता-पिता लगाते हैं वे उनके जीवन की सुरक्षा के लिए होती है किंतु नादान किशोर उन्हें ही अपना शत्रु समझते हैं या समझते हैं कि माता-पिता उन्हें नहीं समझते। माता-पिता उन्हें और उनकी इस नाजुक अवस्था के दौर को समझते हैं तभी तो मर्यादा और कुछ सीमाएं तय करना चाहते हैं लेकिन वे अपने अभिभावकों की इसी समझ को समझ नहीं पाते।जो किशोर इस अवस्था से सुरक्षित निकल जाता है वह जीवन में कभी भटक नहीं पाता!!! ©अंजलि जैन #किशोरावस्था की समझ#०९.१०.२० #worldpostday